नई दिल्ली: बदलते सामाजिक माहौल और बढ़ते मानसिक दबाव के बीच मानसिक स्वास्थ्य अब सिर्फ चिकित्सीय विषय नहीं रह गया है, बल्कि यह कानूनी बहस का भी केंद्र बन चुका है। अदालतों में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जहां अपराधी या आरोपी की मानसिक स्थिति सवालों के घेरे में होती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि भारतीय कानून मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए क्या प्रावधान करता है और कैसे उनके अधिकारों की रक्षा की जाती है।
🧠 मानसिक स्वास्थ्य और कानून: मानसिक रोगियों के लिए क्या कहता है भारतीय कानून?
नई दिल्ली: भारत में मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण सामाजिक और चिकित्सीय मुद्दा बन चुका है। लेकिन अब यह सिर्फ मेडिकल नहीं, कानूनी बहस का विषय भी है। जब कोई मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति अपराध करता है, तो सवाल उठता है – क्या उसे सज़ा मिलनी चाहिए? यहीं से जुड़ता है विषय – मानसिक स्वास्थ्य और कानून।
⚖️ IPC धारा 84: मानसिक रोगियों को आपराधिक सज़ा नहीं
भारतीय दंड संहिता की धारा 84 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति मानसिक विकार की स्थिति में ऐसा अपराध करता है, जिसमें वह सही-गलत नहीं समझ पा रहा हो, तो वह कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
📘 स्रोत: India Code – IPC Section 84
🏥 मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017
यह कानून मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को चिकित्सा और मानवाधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें निम्न प्रावधान शामिल हैं:
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हर नागरिक को मानसिक स्वास्थ्य सेवा पाने का अधिकार
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आत्महत्या की कोशिश अब अपराध नहीं, बल्कि इलाज योग्य स्थिति मानी जाती है
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रोगी की सहमति के बिना इलाज नहीं किया जा सकता
📘 स्रोत: Mental Healthcare Act 2017 – Ministry of Health and Family Welfare
🚨 आत्महत्या और कानून: IPC धारा 309 की नई व्याख्या
पहले आत्महत्या की कोशिश दंडनीय अपराध मानी जाती थी, लेकिन अब Mental Healthcare Act, 2017 के अनुसार यह मानसिक संकट का लक्षण है, और ऐसे व्यक्ति को सहायता दी जाएगी, सजा नहीं।
🧑⚖️ क्या जेल में मानसिक रोगियों के लिए अलग व्यवस्था है?
अगर कोई आरोपी अपराध के समय मानसिक रूप से अस्वस्थ था, तो अदालत उसे सीधे जेल नहीं भेज सकती। ऐसे मामलों में:
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अदालत आरोपी को मानसिक स्वास्थ्य संस्थान भेज सकती है
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मानसिक रोगी को मानवाधिकार के तहत समान अधिकार मिलते हैं
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कानून के तहत इलाज, गोपनीयता और सम्मान अनिवार्य है
💔 मानसिक रोग, महिला हिंसा और कानूनी अधिकार
कई महिलाएं घरेलू हिंसा या शोषण के कारण अवसाद या मानसिक आघात का शिकार होती हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में मानसिक प्रताड़ना को भी हिंसा की श्रेणी में शामिल किया गया है।
🔎 विशेषज्ञों की राय
मानसिक रोग विशेषज्ञों का मानना है कि “कानून को अपराध और मानसिक बीमारी में अंतर समझना होगा”।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार यह कहा है कि मानसिक रोगियों को सहायता और पुनर्वास की आवश्यकता है, न कि दंड की।
📌 निष्कर्ष
मानसिक स्वास्थ्य और कानून का तालमेल समय की जरूरत है। जहां एक ओर मानसिक रोगी को अपराध से मुक्ति मिलनी चाहिए, वहीं समाज को भी यह समझना होगा कि बीमारी का मजाक उड़ाने से नहीं, इलाज से बदलाव आता है।