झारखंड की सियासत में एक बार फिर बड़ी हलचल मची है। राज्य की पूर्व कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद के करीबी लोगों के आवासों और प्रतिष्ठानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 को व्यापक छापेमारी की। यह कार्रवाई सुबह करीब 7:30 बजे शुरू हुई और देर शाम तक चली।
छापेमारी की यह कार्रवाई झारखंड की राजनीति में गहराते कथित भ्रष्टाचार, खनन माफिया और धनशोधन के संगठित नेटवर्क की एक अहम कड़ी मानी जा रही है।
छापेमारी के स्थान और टारगेट
ईडी की टीमें रांची, हजारीबाग और बरकागांव में फैली हुई थीं। कुल 8 से ज्यादा ठिकानों पर एक साथ कार्रवाई की गई। इनमें शामिल हैं:
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संजीत (रांची के किशोरगंज में)
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संजीव साव (अंबा प्रसाद के निजी सहायक)
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मनोज दांगी (खनन क्षेत्र से जुड़ा व्यापारी)
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पंचम कुमार (स्थानीय नेटवर्क संचालक)
इन सभी व्यक्तियों को अंबा प्रसाद का अत्यंत करीबी माना जाता है और इन पर अवैध संपत्ति और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने के गंभीर आरोप हैं।
कार्रवाई की पृष्ठभूमि: मार्च 2024 की रेड से मिले संकेत
मार्च 2024 में ईडी ने अंबा प्रसाद, उनके पिता योगेंद्र साव (पूर्व मंत्री), उनके भाई अंकित राज और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी इसी तरह की छापेमारी की थी।
उस दौरान एजेंसी को निम्नलिखित अहम सबूत हाथ लगे थे:
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₹35 लाख नकद
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8 मोबाइल फोन
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2 लैपटॉप
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सैकड़ों फर्जी रसीदें और स्टांप पेपर
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माइनिंग कंपनी से जुड़ी डायरी
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जमीन से जुड़े नक्शे और स्वीकृतियां
उक्त कार्रवाई के दौरान बरामद दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच और डेटा एनालिसिस के आधार पर यह ताजा छापेमारी की गई है।
मनी लॉन्ड्रिंग का पूरा नेटवर्क कैसे काम करता था?
ईडी सूत्रों के अनुसार, अंबा प्रसाद और उनके करीबियों ने पिछले कुछ वर्षों में दर्जनों कंपनियां बनाई थीं। ये कंपनियां कागजों पर तो वैध दिखती थीं, लेकिन इनके जरिए कथित रूप से अवैध खनन (रेत और कोयला), ट्रांसपोर्टिंग और निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपये का लेनदेन किया गया।
संदेह है कि इन कंपनियों को “पेपर कंपनियों” के रूप में इस्तेमाल किया गया और इनमें काम करने वाले लोग नाम मात्र के थे, जो वास्तव में मजदूर या ग्रामीण थे और उन्हें कंपनियों के नाम पर कोई जानकारी नहीं थी।
इन कंपनियों में की गई फर्जी बिलिंग, कैश डिपॉजिट, बेनामी संपत्ति की खरीद और RTGS/NEFT के माध्यम से धन का मूवमेंट मनी लॉन्ड्रिंग की श्रेणी में आता है।
अब तक की जांच में क्या-क्या सामने आया?
ताजा छापेमारी में जिन दस्तावेजों और डिजिटल साक्ष्यों को जब्त किया गया है, उनमें शामिल हैं:
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बैंक स्टेटमेंट जिनमें संदिग्ध लेनदेन
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इनवॉइस, कैशबुक और लेजर बही खाते
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USB ड्राइव और हार्ड डिस्क, जिनमें संभावित एन्क्रिप्टेड फाइलें
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संपत्ति की रजिस्ट्री और जमीन हस्तांतरण के दस्तावेज
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फर्जी GST रजिस्ट्रेशन और कंपनी PAN कार्ड की फोटोकॉपी
ईडी की टीमें सभी दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच के लिए केंद्रीय लैब को भेज रही हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विवाद
झारखंड कांग्रेस ने इस कार्रवाई को “राजनीतिक बदले की भावना” से प्रेरित बताया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा,
“केंद्र सरकार विपक्षी दलों को दबाने के लिए ईडी का इस्तेमाल कर रही है। अंबा प्रसाद एक लोकप्रिय जननेता हैं, और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की जा रही है।”
वहीं भाजपा नेताओं ने ईडी की कार्रवाई को पूरी तरह जायज़ बताया है। भाजपा के एक विधायक ने कहा,
“सच सामने आना चाहिए। जनता को यह जानने का हक है कि उनके प्रतिनिधि भ्रष्टाचार में लिप्त हैं या नहीं।”
क्या अंबा प्रसाद गिरफ्त में आ सकती हैं?
अगर छापेमारी में मिले दस्तावेज और बैंकिंग लेनदेन से यह साबित होता है कि अंबा प्रसाद की जानकारी और सहमति से यह पूरा नेटवर्क संचालित हो रहा था, तो उनके खिलाफ भी PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के तहत सीधी कार्रवाई हो सकती है।
सूत्रों की मानें तो जांच के अगले चरण में पूछताछ के लिए समन भेजा जा सकता है, और आवश्यकता पड़ने पर गिरफ्तारी भी संभव है।
निष्कर्ष
झारखंड की राजनीति में अंबा प्रसाद लंबे समय से सक्रिय रही हैं। उनका परिवार पहले भी विवादों में रहा है। यह ताजा कार्रवाई न सिर्फ उनकी छवि पर असर डालेगी, बल्कि राज्य की माइनिंग और राजस्व से जुड़ी भ्रष्ट संरचनाओं को भी उजागर करने का काम करेगी।
ईडी की यह छापेमारी झारखंड में भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण के अंतर्संबंध को समझने की एक बड़ी कड़ी साबित हो सकती है। आने वाले दिनों में और भी बड़े खुलासे संभव हैं।